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________________ जाणे जेणे द्रौपदीनो केशकलाप खेच्यो हतो ते मरी गयो के केम ते जोवाने न ऊग्यो होय ! (१२) बीजे दिवसे पांचाली कीचकनी पासे गई; कीचूके तेने बोलावी अने का, “जो तुं मने एक ज वार आलिंगन आपे तो तुं मागु ते वैभव तने आपुं."(१३) कीचके जे कडं ते द्रौपदीए मान्यु अने तेने नृत्यशालामा रात्रे आववानो संकेत गोठवी भीमने बात करी. रात्रे कीचक नृत्यशाला तरफ पोतानी सेना लई गयो. भीम तो त्यां पेसीने ज रह्यो हतो अने कीचक आव्यो एवो ज लेणे तेना केशपाशथी तेने पकडयो. कीचकने लाग्यु, “ आ द्रौपदोनो हाथ न होय; खरेखर गांधर्व ज मने मारी नाखे छे." (१४) कीचके जेम तेम करीने भीमनो प्राह मूकाव्यो अने कहेवा लाग्यो, “ गांधर्व, तुं शा माटे युद्ध करवा आव्यो छे ? हुं नवहजार हाथीना बळवाळो कीचक छु; अने माकं मरण जेनी वसुमती नामनी प्रियाने हुं ऊपाडी लाव्यो हतो ते भीमने झये छे." भीमे बधा पांडवोनुं ओळखाण आप्यु अने पोते भीम छे एम जणाव्यु. आ जाणी कीचके भीमने आह्वान आप्यु. (१५) बन्नेयर्नु मल्लयुद्ध जाम्यु; अवे ते द्वंद्वयुद्धमा कीचके भीमने मुष्टिप्रहार कयों. भीम लोहीनो उलटी करी अने जेम तेम करी ते उभो रही शक्यो. (१६) भीमना मनमां घडीभर एम ज थयं "शुं मारो यश आ द्वंद्वयुद्धमा हणाई जशे ? " परंतु धीरज धरी तेणे फरीथी कीचक उपर हुमलो कयों अने तेने यमसदन पहोंचाडी दीधो. तेणे तेना हाथपग भांगी मांसना लोचा जेवो तेने करी नाख्यो. भीमने बहार काढी द्रौपदीए वहार आवी जणाव्युं 'कीचकने गांधवोंए मारी नाख्यो छे." मा सांभळी 'कीचकने कोणे मार्यो ?” एम कही मोटा योद्धाओ दोडया अने कीचकना सो भाइओए घरने घेरो घाल्यो. (१७) प्रकाश करी बधाए जोयु, त्यारे “खरेखर कीचकने मांधर्वोए मार्यों छे कारण के तेना पर घा सरखो य देखातो नथी." एम तेमने मालम पडयु. एक बाजुए द्रौपदी शून्यवत् उभी हती; बधायने शंका थई के कीचक द्रौपदीने खातर मरी गयो. कीचकना सो भाइओ "सवार थवा देवानी के राजाने पूछवानी शी जरुर छ ?" एम कही कीचकनी ठाठडी उपर द्रौपदीने नाखी मसाण तरफ चाल्या. ( १८ ) द्रौपदीए आकंद करवा मांडयुं, “हे गांधर्वो तमे क्यां मर्या छो ? " भीमथी न रहेवायं; पोताना केश छूटा करी, वृक्षने ऊपाडी, राक्षस जेम कीचकना भाइओ पर धस्यो. कीचकोए ठाठडी छोडी दीधी. वात फेलावा मांडी के कीचको मराया. वृकोदर घेर पाछो वळ्यो अने सूरज ऊग्यो. मत्स्यराजना मनमा संकल्प थयो भने तेणे कैकेयीने जणाव्युं, "द्रौपदीने घर बहार काढो." एटलामां द्रौपदी पोतानां अंगोपांग धोई कोइ देवतानी माफक नगरमां पेठी; भने एकदम बृहमला पासे
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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