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[ बलपण्डु
जय ति-यस- इ - कुवइ - जम· वइ - रिउ-गह- बइ- धणय- -वंदिया जय भुवण-वइ धीर वित्तुन्भव - खवण-वग्ग-संदिया हय-गय-कणय - पाणिंदादि-स-सर-भड घड- उड्डु-गण- घण घण- उलयसंसिया ९५
जय विस विसम विसय गह ह-परिसह सु-हिय - णिवह साहया जय तइ-लोय - णमिय अइसय वर पाविय-परम- संपया जय मलिणिलयाण' रणि फेडिय - दुग्गह- जडल- वलय- सामला जय जय जल-जउण-जल- कज्जल - इसि सुमणस - समुज्जला जय कमल-भव - तंब - तणु-भव आंखलिय सुण भवंतया जय भव-समय समय णविण चउनीसाइसय-वंतया ॥घत्ता ॥ तुम्हह सग्गहो जइ इह अवयरणु ण होंतउ ता दु-किय-भारेण जगु हिट्ठा - मुहु जंतउ ||
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॥ हेला ॥ एव णमेवि णेमि नित्थं करहो पहिट्ठा जायव णिरवसेस पर कोट्टई णिविट्ठा ॥
१. जय मूळमां नथी;
जय त्रिदशपतिकुपतियमपतिऋतुग्रहपतिधनदवंदित ! जय भुवनपते धीर स्यंदितचित्तोद्भवक्षपणवर्ग ! हयगजकनकप्राणेन्द्रियादिसशरभटघटोडुगगघनघनकुलकशंसित ! जय विषविषमविषयप्रहपरोषहसुनिहितनिवह साधक ! जय त्रिलोकनत अतिशयवरप्राप्तपरमसंपत् ! जय मलिनेन्द्रियाणां रणे भग्नदुर्ग्रह जटिलवल पश्यामल ! जय जगज्जलयमुनाजलकज्जलेषत्सुमनः समुज्ज्वल ! जय कमलाभवताम्रतनुभव अस्खलित शृणु भवान् जय भवशमक समयनवीन चतुस्त्रिंशदतिशयवन् ! ॥घत्ता ॥ युष्माकं स्वर्गाद् यदोहावतरणं नाभविष्यत् तर्हि दुष्कृतभारेण जगदधोमुखमगमिष्यत् ॥ ( ९ ) ॥ हेला ॥ एवं नत्वा नेमितीर्थंकरं प्रहृष्टाः यादवाः निरवशेषाः नरकोष्ठके निविष्टाः
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