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(२८२) सपशभा टा, ङि भने अम्नी साथे युष्मद् शने पई भने तई सेवा माहेश थाय छे. टा।
पई मुक्काहवि वर-तरु फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताणं । तुह पुणु छाया जइ होज कहवि ता तेहिं पत्तेहिं ॥ महु हिअउं तई ताए तुहुँ संवि अन्ने विनडिजइ ।
पिअ काई करउं हां काई तुहुं मच्छे मच्छु गिलिजइ ॥ डिना ।
पई मइं बेहिंवि रण-गयहिं को जयसिरि तकेइ ।
केसहिं लेप्पिणु जम-घरिणि मण सुहु को थक्केइ ॥ एवं तइं॥ अमा ।
पई मल्लन्तिहे महु मरणु मई मेल्लन्तहो तुज्यु ।
सारस जसु जो वेग्गला सोवि कृदन्तहो सज्झु ॥ ___ एवं तइं॥
॥ ३७१ ॥ भिसा तुम्हेहिं ॥ आभ्रंशे युष्मदो भिसा सह तुम्हेहिं इत्यादेशो भवति । A५शमा युष्मद्ने भिस् प्रत्ययनी साथे तुम्हेहि मे। माहेश थाय छे. तुम्हेहिं अम्हहिं जं कि दिट्टउं बहुअ-जणेण । तं तेवड्ड समर-भरु निजिउ एक खणेण ॥
॥ ३७२ ॥ उसिडस्भ्यां तउ तुज्झ तुध्र ॥ - अपभ्रंशे सुष्मदो उसिस्भ्यां सह तउ तुज्झ तुध्र इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति ।