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॥ १८८ ॥ आनन्तर्ये वरि ॥
आनन्तर्ये णवरीति प्रयोक्तव्यम् ॥
आनन्तर्य अर्थमां णवरि शब्द उभ्याशय छे. णवरि अ से रहु-वइ. णा || केचित्तु केवलानन्तर्यार्थयोर्णवरणवरि इत्येकमेव सूत्रं कुर्वते तन्मते. भावप्युभयार्थी ॥
॥ १८९ ॥ अलाहि निवारणे ॥
अलाहीति निवारणे प्रयोक्तव्यम् ॥
निवारण अर्थभां अलाहि शह छे. भलाहि किं वाइएण लेहेण || ॥ १९० ॥ अण णाई नञर्थे ॥
अण णाई इत्येतौ नोर्थे प्रयोक्तव्यौ ॥
अण भने णाई या शह निषेध अर्थमा म्यावा. अणचिन्ति अममुणन्ती । णाईं करेमि रोसं ॥
॥ १९९ ॥ माई मार्थे ॥
माई इति मार्थे प्रयोक्तव्यम् ॥
मा शहना निषेध३थी अर्थमा माई शब्द वापरतो. माझं काहीभ रोस । मा कार्षीद् रोषम् ॥
|| १९२ | हद्धी निर्वेदे ॥
ही इत्यव्ययमतएव निर्देशात् हाधिकशब्दादेशो वा निर्वेदे प्रयोक्तव्यम् ॥
हाधिक् या सव्ययाने असे हड्डी मेवो महेश थाय छे. हद्धी हद्धी । हा धाहवाह ||