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________________ द्वितीय अध्याय ( १ ) स्वर से पर में रहनेवाले, अनादिभूत तथा दूसरे किसी व्यञ्जन से संयोगरहित क, ग, च, ज, त, द, प, य और व अक्षरों का प्रायः लुक् होता है। कलोप जैसे-लोचो, सअढं, मउलो, गउलो, गोआ (लोकः, शकटम्, मुकुलम्, नकुलः, नौका); गलोप जैसे --, अरं, मअङ्को, साअरो, भाइरही (नगो, नगरम्, मृगाङ्कः, सागरः, भागीरथी); चलोप जैसे -- सई, कअग्गहो,() वअणं, सूई, रोश्रदि, उइदं, सूत्रअं ( शची, कचग्रहः, वचनम्, सूची, रोचते, उचितम् सूचकम् ); जलोप जैसे—- रओ, पवई, [] गओ, रअदं ( रजकः, प्रजापतिः, गजः, रजतम् ); तलोप जैसे -- वित्राणं, किअं, रसा-अलं) ( रअणं (वितानम्, कृतम्, रसातलम्, रत्नम् ); दलोप जैसे- " * सयढं पाठान्तर हेम० व्या० में है । + हेम० व्या० में 'नो' पाठान्तर है । † हेम० व्या० में 'नयर' पाठान्तर है । $ म० व्या० में 'मयङ्को' पा० । () हेम० व्या ० ' कयग्गहो' पा० । [] हेम० व्या० 'पयावई' पा० । )( हेम० व्या ० ' रसा-यल ' पा० ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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