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________________ प्रथम अध्याय ३६ : (संवृत्तम् ); वुड्ढो (वृद्ध:) मुडालं (मृणालम् ); पाहुदं (प्राभृतम् ); पुट्ठे (पृष्ठम् ); पुहइ, पुहवी ( पृथिवी), पाउ ( प्रावृतम्) भुई (भृतिः); विउ ( विवृतम्); बुंदावणं (वृन्दावनम् ); जामाउओ, जामादुओ (जामातृकः); पिउओ (पितृकः); णिहुअं णिहुदं (निभृतम्); वुई (निर्वृतिः); बुड्ढी (वृद्धिः); माउआ (मातृका); रिउ (निवृतम्); वृत्तान्तो ( वृत्तान्तः); उजू (ऋजुः); पुहुवी (पृथिवी); बुंदं (वृन्दम् ); माऊ, मादु (माता) विशेष – मृगाङ्क शब्द में मुअंको और मत्रको दोनों रूप होंगे । ( ४ ) समास आदि में जो पद प्रधान न होकर गौ होता है, उसके अन्तिम ऋ के स्थान में उकार होता है। जैसे प्राकृत संस्कृत माउ मण्डलं मादु-मण्डलं , माउ-हरं मादु-हरं पिउ-वणं } मातृमण्डलम् मातृगृहम् पितृवनम् (८५) गौण (प्रधान) मातृ शब्द के ऋकार का इकार विकल्प से होता है । जैसे - माइ - मण्डलं, माइ-हरं । पक्ष मेंमाउ (दु)-मण्डलं; माउ (दु)-हरं विशेष कभी-कभी प्रधान ( गौण) मातृ के ऋकार का हो जाता है । जैसे - माइणो (मातुः) ( ८६ ) व्यञ्जन से सम्पर्करहित ॠ का रि आदेश कहीं विकल्प भी
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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