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________________ ३४ प्राकृत व्याकरण दोहा किज्जदि (अकार) दुहा किज्जदि (उकार) द्विधा क्रियते विशेष — (क) कृञ् का प्रयोग नहीं रहने से दिहा गयं (द्विधागतम् ) में उक्त नियम नहीं लगा । (ख) कहीं कहीं केवल (कृन् रहित) द्विधा में भी उत्व देखा जाता है | दुहा विसो सुर-बहू-सत्थो (द्विधापि स सुरवधूसार्थः) (७३) पानीय गरण के शब्दों में दीर्घ ईकार के स्थान में sa इकार होता है । जैसे - पाणि ( पानीयम् ); अलि (अलीकम् ); जिइ ( जीवति ); जिउ ( जीवतु ); विलियं -( ब्रीडितम् ); करिसो ( करीषः ); सिरिसो ( शिरीषः ); दुइअं ( द्वितीयम् ); तइअं (तृतीयम् ); गहिरं ( गभीरम् ); उवणि (उपनीतम् ); आणि ( आनीतम् ); पलिवि ( प्रदीपितम् ); ओसिन्तो ( अवसीदन् ); पसि (प्रसीद ); गहि (गृहीतम् ); म (वल्मीकः ); तयाणि ( तदानीम् )† * कल्पलतिका के अनुसार पानीय गरण में निम्नलिखित शब्द संग्रहीत हैं पानीयब्रीडितालीकद्वितीयं च तृतीयकम्, यथागृहीतमानीतं गभीरञ्च करीषवत् इदानीं च तदानीं च पानीयादिगणो यथा । प्राकृतमञ्जरी में इनसे भी कम संगृहीत हुए हैंपानीयव्रीडितालीकद्वितृतीयकरीषकाः गभीरञ्च तदानीञ्च पानीयादिरयं गणः । प्राकृतप्रकाश पानीयादि गण में उपनीत, श्रानीत, जीवति,
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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