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________________ प्रथम अध्याय (७०) जहाँ निर के रेफ का लोप होता है, वहाँ नि के इकार का ईकार हो जाता है। जैसे-णीसहो (निस्सहः) णीसासो (निःश्वासः)। विशेष—रेफ के लोप का अभाव रहने पर उक्त ईकार नहीं होता। जैसे-णिरो (निरयः), णिस्सहो (निःसहः)। (७१) द्वि शब्द और नि उपसर्ग के इकार का उ आदेश होता है। किन्तु कहीं-कहीं यह नियम नहीं भी लागू होता है । द्वि शब्द के विषय में कहीं विकल्प से उत्व होता और कहीं श्रोत्व भी देखा जाता है। द्वि शब्द के विषय में नित्य उत्व जैसे—दुवाई, दुवे, दुवअणं (द्वौ, द्विवचनम् ); द्वि शब्द में विकल्प से उत्व जैसे—दुउणो, दिउणो; दुइओ, दिउओ (द्विगुणः, द्वितीयः) द्वि शब्द के विषय में नियम की अप्रवृत्ति-दिओ, द्विरो (द्विजः, द्विरदः); द्वि शब्द के विषय में प्रोत्व-दोवअणं (द्विवचनम् )। नि उपसर्ग के विषय में इकार का उत्व जैसेगुमज्जइ, गुमण्णो (निमज्जति, निमग्नः); नि उपसर्ग के विषय में नियम की अप्रवृत्ति जैसे-णिवडइ (निपतति) (७२) कृञ् धातु के प्रयोग में द्विधा शब्द के इकार का. ओत्व और उत्व होता है । जैसेप्राकृत संस्कृत दोहा इअं(ोकार) द्विधा कृतम् दुहा इअं (उकार) ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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