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प्राकृत व्याकरण (५२)-समृद्धथादिगण के शब्दों में आदि अकार का दीर्घ विकल्प से होता है। जैसे-सामिद्धी, समिद्धी ( समृद्धिः); पाअडं, पअडं (प्रकटम् ); पासिद्धी, पसिद्धी (प्रसिद्धिः); पाडिवा, पडिवत्रा (प्रतिपदा); पासुत्तं, पसुत्तं (प्रसुप्तम् ); पाडिसिद्धी, पडिसिद्धी (प्रतिसिद्धिः) सारिच्छो, सरिच्छो (सदृक्षः); माणंसी, मणंसी (मनस्वी); माणंसिणी, मणंसिणी (मनस्विनी); पाहिआई, अहिआई (अभिजातिः); पारोहो, परोहो (प्ररोहः), पावासू, पवासू (प्रवासी); पाडिप्फद्धी, पडिप्फद्धी (प्रतिस्पर्धी), आसो अस्सो (अश्वः)। विशेष—प्राकृतप्रकाश ने इस गण को आकृति गण माना
है। ऊपर उदाहरणों में इसीलिए मनस्वी, प्ररोहः और अश्वः की उक्त गण के भीतर सिद्धि मानी
(५३) दक्षिण शब्द में आदि अकार का, ह के पर में रहने पर, दीर्घ होता है । जैसे-दाहिणो ( दक्षिणः) । विशेष-ह नहीं रहने पर दक्षिणः का दक्खिणो यही रूप
रह जाता है। (५४) स्वप्न आदि शब्दों में आदि 'अ' का इकार होता है। जैसे-सिविणो ( स्वप्नः); इसि ( इर्षत् ); वेडिसो ( वेतसः), * समृद्धयादि गण के शब्दों का परिगणन यों है
समृद्धिः, प्रतिसिद्धिश्च, प्रसिद्धिः प्रकटं तथा; प्रसुप्तञ्च प्रतिस्पर्धी प्रतिपच्च मनस्विनी।
अभिजातिः, सदृक्षश्च समृद्धयादिरयं गणः ।।--कल्पलतिका । * पाहिजाई यह पाठान्तर है। + अहिजाई यह पाठान्तर है।