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________________ १३ प्रथम अध्याय जैसे-वंकं (वक्रम् ), तंसं (व्यस्रम् ), अंसुं (अश्रु), मंसू (श्मश्रु) पुंछ (पुच्छम् ) गुंछं (गुच्छम् ), मुंढा अथवा मुंडं (मूर्द्धा ), फंसो ( स्पर्शः), बुंधो (बृघ्नः), कंकोडो (कर्कोटः), कुंपलं ( कुट्मलं अथवा कुड्मलम् ), दंसणं (दर्शनम् ) विंछित्रो ( वृश्चिकः), गिंठी अथवा गुंठी (गृष्टिः) मंजारो (मार्जारः)* वयंसो ( वयस्यः), मणंसिणी (मनस्विनी), मणंसिला (मन:शिला), पडिंसुदं (प्रतिश्रुतम् ), पडिंसुआ (प्रतिश्रुत्)। उवरि ( उपरि ), अहिमुंको (अभिमुक्तः) अणितियं, अइमुंतयं (अतिमुक्तकम्) (३४) क्त्वा एवं स्वादि के ण और सु के आगे विकल्प से अनुस्वार आता है। क्त्वा के आगे जैसेप्राकृत संस्कृत काउणं (अनुस्वार), काऊण (अनुस्वार का अभाव) कृत्वा स्वादि के ण के आगे जैसेवच्छेणं (अनुस्वार ), वच्छेण (अनु० का अभाव) वृक्षण स्वादि के सु के आगे जैसेवच्छेसुं (अनुस्वार ), वच्छेसु (अनु० का अभाव) वृक्षेषु * वंकं से मंजारो तक प्रथम स्वर के आगे अनुस्वार का भागम हुआ है। +वयंसो से पडिसुत्रा तक शब्दों में द्वितीय स्वर के आगे अनुस्वार का आगम होता है। * उवरि से अइमुंतयं तक शब्दों में तृतीय स्वर के आगे अनुस्वार का आगम होता है।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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