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एकादश अध्याय (७७) अपभ्रंश में लिङ्ग प्रायः बदलते रहते हैं। जैसे:गय-कुम्भई (गजकुम्भानि | कुम्भ शब्द पुंल्लिङ्ग है, किन्तु नपुंसक के रूप में व्यवहृत हुआ है)। ___ (७८) अपभ्रंश के शेष कार्य सौरसेनी के अनुसार किये जाते हैं।
इति शुभम् ।