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________________ २२८ प्राकृत व्याकरण (७४) अपभ्रंश में ' नुम् ' प्रत्यय के स्थान में एवं, अण, अहं, अहिं, एप्पि, एप्पिणु, एवि और एविणु ये आठ आदेश होते हैं । एवं जैसे : — देवं ( दातुम् ); अण जैसे :- करण ( कर्तुम् ); अणहं और अहिं जैसे :- भुञ्जणहं, भुञ्जगहिं ( भोक्तुम् ); एप्प, एपिणु, एवि और एविणु जैसे :जेपि चएप्पिर, पालेवि और लेविणु ( जेतुं त्यक्तुं, पालयितुं और लातुम् ) । विशेष :- गम धातु से एप्पिणु आने पर गम्पिणु और गमेपि रूप होते हैं । उसी तरह एप्पि के रहने पर गम्पि और गमेपि रूप होते हैं | ( ७५ ) अपभ्रंश में तृन् प्रत्यय के स्थान में अणअ आदेश होता है । जैसे :- मारणउ ( ओ ); बोल्लणड ( मारयिता, कथयिता ) | ( ७६ ) अपभ्रंश में इव ( उत्प्रेक्षा में ) के अर्थ में नं, नङ, नाइ, नाइव, जणि, जग्गु ये छ: रूप होते हैं । K नं जैसे:- नं मल्ल जुज्झु ससिराहु करहिं ( ननु मल्लयुद्धं शशिराहू कुरुत: ) नउ जैसे :- नउ जीवग्गलु दिष्णु | ( ननु जीवागलो दत्तः ) नाइ जैसे : – थाह गवेसइ नाइ | ( स्तोघं गवेषयतीव ) नावइ जैसे :- - नावइ गुरु-मच्छर भरिउ | ( ननु गुरु- मत्सर - भरितम् ) जणि जैसे: सोहइ इन्दनीलु जणि कणइ बहुउ ( शोभते इन्द्रनीलः ननु कनके उपवेशित: ) जणु जैसे :- निरुषम-रसु पिएं पिएवि जणु । ( निरुपमरसं प्रियेण पीत्देव ) |
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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