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________________ २२० व्रज वुञ दृश प्रस्स ग्रह गुण्ह तक्ष छोल्ल तापि झलक शल्याय खुडुक्क गर्ज घुडुक्क प्राकृत व्याकरण वुञइ, जेपि, विणु' प्रस्सदि ४ पढ, गुहेपितु ( पठ गृहीत्वा व्रतम्) ससि छोल्लिजन्तु ( शशी अतक्षिष्यत ) सासानलजाल झलक्कि अउ " ( श्वासानलज्वालासन्तापितम् । ) हिअइ खुडुकई' (हृदये शल्यायते ) घुडुक मेहु (गर्जति मेघः ) ( ४ ) अपभ्रंश में पद के आदि में अवर्तमान किन्तु स्वर सेपर में आनेवाले और असंयुक्त क, ख, त, थ, प, फ, वर्णों के स्थान में प्रायः ग, घ, द, ध, ब और भ क्रम से ही होते हैं । जैसे :- पिअमाणुसविच्छोह गरु (प्रिय मनुष्यवि क्षोभकरम् ); सुि चिन्तिज्जइ माणु ( सुखं चिन्त्यते मान: ); कधिदु ( कथितम् ); सबंधु ( शपथम् ); सभलउ ( सफलम् ) । (५०) अपभ्रंश में पद के आदि में अवर्तमान असंयुक्त मकार के स्थान में अनुनासिक वकार विकल्प से होता है । जैसे:- कवलु, भवँरु ( कमलम्, भ्रमरः ); जिवँ, तिवँ ( जिम, तिम ) | ( ५१ ) अपभ्रंश में संयोग के बादु में आनेवाले रेफ का लुक विकल्प से होता है । जैसे :- जइ केवइ पावीसु पिउ ( यदि १. हेम० ४. ३९२. २. हेम० ४. ३९३. ४. हेम० ४. ३९५. ३. हेम० ४. ३९४. ५. तुलना कीजिए - भोजपुरी के 'फरकना' से । हेम० ४. ३९५. ६. 'काँटे जैसा आचरण करना' इस अर्थ में । हेम० ४. ३९५. ७. तुलना कीजिए - हिन्दी के 'घुडकना' से । हेम० ४. ३९५.
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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