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________________ एकादश अध्याय २१६ (४७) अपभ्रंश में भविष्यत्कालिक तिङ-संबन्धी 'स्य' के स्थान में सआदेश विकल्प से होता है। जैसे :- होसइ '; पक्ष में - होहि ( भविष्यति ) । (४८) संस्कृत के 'क्रिये' इस क्रियापद के स्थान में अपभ्रंश में की यह आदेश विकल्प से होता है । जैसे :- 'तसु कन्तहों बलि की ( तस्य कान्तस्य बलिं क्रिये ) | संस्कृत धातुओं के अपभ्रंश में आदेश :धातु आदेश उदाहरण भू (पर्याप्ति में) हुच्च ब्रू --- ब्रुव ब्रोप्प प्रिय एम्बहिँ करें सेल्लु करि छंडहि तुहुँ करवालु । जं कावालिय बप्पुडा लेहि अभग्गु कवालु ॥ ( कुअर स्मर मा सल्लकीः सरलान् श्वासान् मा मुञ्च । कवला ये प्राप्ता विधिवशेन तांश्वर मानं मा मुञ्च ॥ भ्रमर अत्रापि निम्बके कति दिवसान् विलम्बस्व । घनपत्रवान् छायाबहुल : फुल्लति यावत्कदम्बः ॥ प्रिय एवमेव कुरु भलं करे त्यज त्वं करवालम् । येन कापालिका वराका लान्ति अभग्नं कपालम् ॥ ) १. दिहा जन्ति झडप्पडहिं पडहिं मनोरहं पच्छ । जं अच्छा तं माणिइ होसइ करतु म अच्छि ॥ ( दिवसाः यान्ति वेगैः पतन्ति मनोरथाः पश्चात् । यदस्ति तन्मान्यते भविष्यति कुर्वन् मा आस्स्व ॥ ) २. हेम ० ४ ३९०. ३. हेम० ४. ३९१. ४. हेम० ४. ३९१० "" अहरि पहुच नाहु (अधरे प्रभवति नाथः ) वह सुहासिउ किंपि ( ब्रूत सुभाषितं किञ्चित् ) त्रोप्पिणु ( उक्त्वा )
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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