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________________ जन १३४ प्राकृत व्याकरण रुध उत्थव या उत्तङ्घ । पक्ष में रुन्ध नि+सिध हक्क | पक्ष में निसेह ऋध जूर | पक्ष में कुज्झ जा, जम्म तड, तड्डु, तडव, विरल्ल और तण तृप्त थिप्प उप+मृप अल्लिअ | पक्ष में उवसप्प सं+तप झंख | पक्ष में संतप्प वि+आप ओअग्ग। पक्ष में वाव सं+आप समाण | पक्ष में समाव क्षिप गलत्थ, अडुक्ख, सोल्ल, पेल्ल, णोल्ल, छुह, हुल, परी, धत्त । पक्ष में खिव उद्+क्षिप' गुलगुञ्छ, उत्थंघ, अल्लत्थ, उन्भुत्त, उस्सिक, हक्खुव | पक्ष में उक्खिव आ + क्षिप णीरव | पक्ष में अक्खिव स्वप कमवस, लिस, लोट्ट | पक्ष में सुञ्ज वेप आयम्ब, आयज्झ | पक्ष में वेव वि+ लप झंख, वडवड | पक्ष में विलव लिप लिम्प गुप विर, णड | पक्ष में गुप्प कृप अवहाव' प्र+दीप तेअव, सन्दुम, सन्धुक्क, अन्भुत्त और पक्ष में पलीव संभांव | पक्ष में लुब्भ खडर, पड्डुह । पक्ष में खुम्भ १. अवहावेइ = कृपां करोतीत्यर्थः । हेम० ४. १५१. लुम क्षुम
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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