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________________ पञ्चम अध्याय [ अव्यय प्रकरण ] (१) वाक्योपन्यास अर्थ में 'तं' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। जैसे :- तं निव- पुच्छि अ-दो आरिएण ( राजा से पूछे गये दौवारिक ने इस प्रकार वाक्य का उपन्यास किया । ) कुमापा. ४. १. ( २ ) अभ्युपगम ( स्वीकार ) अर्थ में आम अव्यय का प्रयोग किया जाता है । जैसे : - आम गिम्ह-सिरी । हाँ, यह सही है कि इस उद्यान में इन दिनों ग्रीष्म ऋतु की शोभा फैली है । ) कुमा. पा. ४. १. अव्यय का प्रयोग किया वि ( गरम के विपरीत कुमा. पा. ४. १. ( ४ ) कृतकरण अर्थात् फिर से उसी क्रिया को करने अर्थ में 'पुणरुत्तं' अव्यय का प्रयोग होता है । जैसे :- पेच्छ पुणरुत्तम् ( एक बार देख चुकने पर भी फिर से देखो । ) कुमा. पा. ४. १. (५) विषाद, विकल्प, पश्चात्ताप, निश्चय और सत्य अर्थों में 'हन्दि ' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। विषाद अर्थ में जैसे :- हन्दि विदेसो ( दुःख है कि हमारे लिए यह विदेश है ? ); विकल्प अर्थ में जैसे :- जीवइ हन्दि पिआ ( पता नहीं मेरी प्रियतमा जीती है अथवा नहीं में जैसे :- हन्दि किं पिआ मुक्का ? ); पश्चात्ताप अर्थ ( क्या हमने विरह ( ३ ) विपरीतता अर्थ में 'वि' जाता है । जैसे :- उरहेह सीअला ठंढी अथवा गरम होती हुई भी ठंढी )
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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