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की सहायता पहुँचाई है, उनसे हमारी एक ही प्रार्थना है, कि भविष्य में प्रकाशित होनेवाली पृथक-पृथक् ग्रन्थमालाओं में भी वे ऐसी ही सहायता पहुँचावें, तथा जैनसाहित्य के प्रचार में हमारे साथ उचित सहयोग करें। वन्दे वीरम् ।
श्रावण कृ० ८ सं. १९८६ वि० । विनम्र-संघसेवक
खानपुर-अहमदाबाद , धीरजलाल