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श्री पार्श्वनाथ करना प्रारम्भ किया। इस तरह पवित्र-जीवन बितानेवालों का एक संघ स्थापित हुआ। इस प्रकार के संघ को तीर्थ कहते हैं । ऐसे तीर्थ की स्थापना करने के कारण ही, श्री पार्श्वनाथजी तीर्थ बनानेवाले अर्थात् तीर्थङ्कर कहलाये।
उनके माता-पिता तथा प्रभावती आदि सब परिवार भी उनके इस संघ में सम्मिलित होगया।
कुल, एक-सौ वर्ष की आयु व्यतीत कर, श्री पार्श्वनाथजी निर्वाण-पद को प्राप्त हो गये, अर्थात सब कर्मों के बन्धन से छूटकर, मुक्त-पद पागये ।
बोलो, श्री पाश्वनाथ भगवान की जय ! बोलो, श्री तेईसवें तीर्थङ्कर-देव की जय !!
ॐ शान्तिः
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