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महासती राजमती, पवित्रता की खान थीं । उन्हें भी, संसार के लालचों से मोह न हुआ था । उन्होंने, श्री नेमिनाथ का जीवन देखा और वह उन्हें अत्यन्त - पवित्र मालूम हुआ । उन्होंने, श्री नेमिनाथ का उपदेश सुना और वह भी उन्हें बहुत अच्छा मालूम हुआ । अतः उन्होंने प्रभु श्री नेमिनाथजी सामने ही, साध्वी बनकर जीवन बिताना प्रारम्भ कर दिया । साध्वी की तरह, बहुत दिनों तक पवित्र - जीवन व्यतीत करके, वे मोक्ष को पधार गईं ।
प्रभु श्री नेमिनाथ ने भी बहुत दिनों तक जीवित रहकर, अन्त में गिरनार पर्वत पर निर्वाणपद प्राप्त किया । इस तरह, गिरनार पर्वत, श्री नेमिनाथ तथा सती - शिरोमणि राजमती के चरणों से, सदा के लिये पवित्र हो गया ।
बोलो, बाइसवें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथ भगवान की जय ।
बोलो, महासती राजमती की जय ।
ॐ शान्तिः