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________________ १८ हो, इसके लिये वे उपदेश देने लगे। उनके उपदेश का सार यों है: - 66 सब के साथ मित्रता की भावना रखनी चाहिये । सदा सत्य और मीठी वाणी ही बोलनी चाहिये । बिना आज्ञा किसी की वस्तु न लेनी चाहिये । शीलव्रत का पालन करना चाहिये । सन्तोष से रहना चाहिये | अपने जीवन को दयामय बनाना चाहिये । धर्म को, प्राणों के समान प्रिय मानना चाहिये । और यदि आवश्यकता आ पड़े, तो धर्म के लिये अपना जीवन भी दे देना चाहियेइत्यादि । "" श्रीकृष्ण आदि बहुत-से मनुष्यों ने यह उपदेश • माना । अनेक स्त्री-पुरुषों ने साधु-जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया । दूसरे अनेक पुरुषों तथा स्त्रियों ने, घर में रहते हुए भी जितना हो सके, उतना पवित्र - जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया। इस तरह, दोनों प्रकार के स्त्री-पुरुषों का एक संघ स्थापित हुआ । ऐसे संघ को तीर्थ कहते हैं और यही कारण है, कि ऐसे तीर्थ की स्थापना करने के कारण, भगवान श्री नेमिनाथ तथा अन्य तेइस भगवानों को तीर्थङ्कर कहा गया है । सारांश यह कि 'तीर्थङ्कर' शब्द के मानी हैं - तीर्थ बनाने वाले ।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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