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________________ मूर्छित हो गईं और, जब होश में आईं, तब बडे जोर से रोने लगीं / वे, श्री नेमिनाथ को ही याद करती रहतीं और रोया करती थीं। यह देखकर, सखियों ने, राजमती से कहा-बहिन ! आप, ऐसे प्रेमरहित पति के लिये शोक क्यों करती हो ? थोड़े ही समय में, दूसरा योग्य-पति आपके लिये ढूंढ निकाला जावेगा। सखियों की यह बात सुनकर, राजमती ने अपने कानों पर हाथ रखे और बोलीं-अरे बहनो ! ऐसी बुरी बात क्यों बोलती हो? पति तो मेरे श्री नेमिनाथ हो चुके, अब उनके सिवा दूसरा पति कैसे हो सकता है ? मैं भी, अब उनका ही अनुकरण करूंगी और अपना जीवन सफल बनाऊंगी। श्री नेमिनाथ का वैराग्य अब दिन-दिन बढ़ता ही जाता था। वैराग्य की वृद्धि के कारण ही, उन्होंने एक वर्ष तक सोने की मुहरों का दान दिया और अन्त में साधु हो गये / साधु होजाने का मतलब है-मन से पवित्र हो गये तथा माता-पिता एवं भाई-बहनों के प्रेम-सम्बन्ध को विशाल करके, संसार के सभी
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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