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होगया, अतः वह दीक्षा लेकर साध्वी बन गई। बहुत दिनों तक पवित्र-जीवन व्यतीत करके, अन्त में वह भी निर्वाणपद को प्राप्त होगई।
पाठको ! एकाध बार शान्त-भाव से श्री खन्धक मुनि की यह सज्झाय गाना, कि:
नमो नमो खन्धक मुनिवरजी, पूर्ण क्षमा के सागर जो रे ॥
शिवमस्तु सर्वजगतः