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________________ १९ ७- खन्धक भुनि साधु खन्धक महा-मुनि को बारम्बार नमस्कार । खन्धक मुनि क्षमा के भण्डार थे । श्रावस्ती के राजा कनककेतु उनके पिता और मलयासुन्दरी उनकी माता थीं। एक बार, - मुनिराज उपदेश से उन्हें वैराग्य होगया, अतः दीक्षा ले ली। जिस शुद्ध - भावना से उन्होंने दीक्षा ली थी, उसी तरह संयम का पालन भी करते थे । सदैव कठिनतपस्या करते और संकट आने पर उन्हें हँसते हुए सहन करते | यों करते-करते, एक दिन वे अपनी बहिन के शहर में आये । बहिन और बहनोई दोनों छज्जे में बैठे हुए नगर की शोभा देख रहे थे । वहीं बैठे-बैठे उन्होंने दूर से मुनिराज को आते देखा । बहिन ने उन्हें देखते ही पहचान लिया, कि यह तो मेरा प्यारा- भाई मुनिराज के वेश में आ रहा है । वह, मुनिराज के सामने टक-टक देखती और नेत्रों से आँसुओं की धारा बहती रही । यह देखकर, राजा के चित्त में बड़ा सन्देह पैदा होगया । वह मन ही मन सोचने लगा, कि - " यह कैसा साधु, जिसे देखकर रानी रो रही है ? अवश्य ही रानी के साथ इसका अनुचित - सम्बन्ध होगा । अच्छा, तो मैं अभी जाकर इस दुष्ट की खबर लेता हूँ ।" राजा वहाँ से उठकर चला और बाहर आकर अपने सेवकों को हुक्म दिया, कि - " उस साधु की जीवित ही चमड़ी उतार लाओ " । सेवकगण दौड़े
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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