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उन्हें, अनशन व्रत धारण किये अभी थोड़ी ही देर हुई थी, कि उनके पैर से निकलनेवाले खून की गन्ध पाकर, एक सियारनी वहाँ आ पहुँची । यह सियारनी नई बियाई हुई और बहुत भूखी थी, अतः वहाँ पहुँचते ही वह अवन्तिसुकुमाल का पैर चबाने लगी । कैसा भारी संकट ! किन्तु जिनका मन मजबूत है, उनके लिये ऐसे कष्ट क्या चीज़ हैं ? अवन्तिसुकुमाल, इस समय भी ध्यान में ही खड़े रहे ।
सियारनी, काट-काटकर मांस खाने लगी और थोड़ी ही देर में उस ने एक पैर खा डाला । किन्तु अवन्तिसुकुमाल अपने ध्यान से ज़रा भी न डिगे। थोड़ी ही देर के बाद उस। ने दूसरा पैर भी चबा डाला, किन्तु अवन्तिसुकुमाल ने न तो अपने मन में ज़रा-सा दुःख ही माना और न मुँह से 'आह' at foot | केवल शुभ - ध्यान, शुभ- चिन्तन और शान्तभावना उनके हृदय में थी ।
सियारनी तो आज खाऊँ - खाऊँ कर ही रही थी, अतः वह इतने से क्यों अघाने लगी ? उसने पेट खाया, छाती खाई और अन्त में सिर भी चबा गई। शाम पड़ते-पड़ते, वहाँ केवल हड्डियें ही हड्डियें बाकी रह गईं ।
शुरवीर अवन्तिसुकुमाल, अपने स्थिर-ध्यान के कारण नलिनीगुल्म नामक विमान में उत्पन्न हुए ।
दूसने दिन का सबेरा हुआ, अतः भद्रामाता तथा अव