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सिर पर रखे हुए अंगारों की गर्मी के कारण, थोड़ी ही देर में उनका शरीर छूट गया और वे मोक्ष को पधार गये ।
हे नाथ ! ऐसे क्षमासागर की क्षमाभावना हमारे हृदय में भी उत्पन्न हो ।
३ - अवन्तिसुकुमाल
उज्जयिनी नगरी में, चढ़ती जवानीवाला एक बालश्रीमन्त रहता था । वह, बत्तीस - स्त्रियों का पति और बड़े धन-माल का स्वामी था । उसके पिता धनदत्त सेठ की मृत्यु होजाने के कारण, उसकी भद्रामाता घर का सारा कारोबार चलाती थीं ।
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एक समय आर्यमहागिरि महाराज नामक एक मुनिराज, भद्रा सेठानी के बरामदे में उतरे । वहाँ एक बार सब साधु मिलकर, नलिनीगुल्म विमान की सज्झाय पढ़ने लगे । अव - न्तिसुकुमाल ने जब यह सज्झाय सुनी, तो उन्हें ऐसी याद आने लगी, कि मैंने कहीं पर ऐसा अनुभव किया है । अतः वे गुरुजी के पास आये और हाथ जोड़कर बोले, कि - " गुरु महाराज ! ऐसा सुख किस तरह मिल सकता है, यह मुझे बतलाने की दया कीजिये " । गुरु महाराज ने उत्तर दिया, कि - " जो शुद्ध चारित्र्य पालते हैं, वे मोक्ष को जाते हैं और जो मोह सहित चारित्र्य पालते हैं, वे देवलोक