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इस सीमा तक अहिंसा-व्रतका पालन करनेवाले, कितने महात्मा होंगे?
२-गजसुकुमाल श्री नेमिनाथ, मधुर-वाणी से उपदेश दे रहे थे। वहाँ, श्रीकृष्ण महाराज के छोटे भाई गजसुकुमाल आये । उन्होंने भी वह उपदेश सुना, जिससे उन्हें वैराग्य होगया। अतः वे अपनी माता देवकीजी के पास गये और उनसे दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी। देवकीजी ने उन्हें बहुत कुछ समझाया, कि-" बेटा ! अभी तुम्हारी उमर बहुत कम है और संयम का पालन करना बड़ा कठिन कार्य है । वह तुमसे पल नहीं सकता, अतः तुम अभी यह इच्छा छोड़ दो।" किन्तु गजसुकुमाल की भावनाएँ बड़ी दृढ़ थीं, अतः वे अपने विचारों पर स्थिर रहे। अन्त में देवकी ने अपनी आज्ञा देदी और गजसुकुमाल ने दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षा लेने के पश्चात् , उन्होंने भगवान से कहा, कि"प्रभो ! मोक्ष शीघ्र मिल जाय, ऐसा कोई उपाय बतलाइये"। प्रभु श्री नेमिनाथजी ने उत्तर दिया, कि-" ध्यान धरकर खड़े रहो और मन, वचन तथा काया को अच्छी तरह पवित्र बनाओ"।
गजसुकुमाल ने, स्मशान में जाकर ध्यान लगाया ।