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(१०) ईति-भीति व्यापे नहिं जगमें, वृष्टि समय पर हुआ करे, धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजाका किया करे। रोग भरी-दुर्भिक्ष न फले, प्रजा शान्तिसे जिया करे, परम अहिंसा-धर्म जगतमें, फैल सर्वहित किया करे।।
(११) फैले प्रेम परस्पर जगमें, मोह दूर पर रहा करे, अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुखसे कहा करे। बनकर सब 'युग वीर' हृदयसे देशोन्नतिरत रहा करें, वस्तुस्वरूप विचार खुशीसे सब दुख-संकट सहा करें।