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________________ विमलशाह पसन्द न पड़ा । इतने ही में उन्होंने विमल की प्रशंसा सुनी, अतः उसी के साथ अपनी कन्या की सगाई कर दी। विमल के मामा अब विचारने लगे, कि-" इसके विवाह का खर्च कहाँ से आवेगा ?" __वीरमती सोचने लगीं, कि-" विमल का विवाह मेरे परिवार को शोभा दे, वैसा करना चाहिये । यह, लाहिर मंत्री का पौत्र है।" किन्तु भाई की स्थिति ध्यान में थी, अतः उन्होंने निश्चय किया, कि-" जबतक काफी धन न मिले, तबतक विमल का विवाह न करूँगी"। फिर विमल को बुलाकर उससे कहा, कि-" बेटा ! जब मुझे धन मिलेगा, तभी मैं तेरा विवाह करूंगी"। विमल ने, शान्तिपूर्वक यह सुन लिया। दूसरे दिन .ढोरों को लेकर विमल जंगल में गया । वहाँ एक झाड़ के नीचे बैठकर वह चिन्ता करने लगा, कि-" अब मुझे धन प्राप्त ही करना पड़ेगा। क्या करूँ ? मुझे किस तरह धन प्राप्त हो सकता है ? "यों विचार करतेकरते उसने अपने हाथ में की लकडी पास ही की एक दरार में घुसेड़ी, कि त्यों ही धम-धम ढेले टूट पड़े । विमल, उन ढेलों को दूर करके देखता है, तो भीतर सोने की मुहरों का एक घड़ा दिखाई दिया। यह देखते ही उसके आनन्द की कोई सीमा न रही। वह घड़े को घर लाया और वीरमती के
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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