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विमलशाह
घर को वापस लौट आया। अब पिता ने समझ लिया, कि पुत्र बड़ी उमर का हो चुका है, अतः उन्होंने घर का सारा भार विमल पर डाल दिया और स्वयं दीक्षा लेकर चल दिये । चलते समय उन्होंने विमल को शिक्षा दी, कि - " बेटा ! निडर बनना और जिन - भगवान की आज्ञा अपने सिर चढ़ा कर मानना " । विमल के जीवन पर इस उपदेश का बड़ा प्रभाव पड़ा ।
ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, त्यों-त्यों विमल का विकास प्रत्येक तरह से अधिक होता गया । उसके शत्रु, यह देख-देखकर मन ही मन खूब जलते तथा डाह करते थे । माता वीरमती को जब यह बात मालूम हुई, तो वे विचारने लगीं, कि – “विमल के शत्रु इस शहर में बहुत हैं, अतः जबतक वह सयाना न होजाय, तबतक मुझे कहीं दूसरी जगह जाकर रहना चाहिये " । यों सोचकर, अपने साथ विमल को ले, अपने पीहर को चली गईं ।
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उनके पीहर में बड़ी गरीबी थी । यहाँ तक, कि जब घर के बूढ़े - मनुष्य भी मिहनत-मजदूरी करते, तब खाने का गुजर चलता था । इसी कारण वीरमती के भाई को वीरमती तथा विमल का आना अच्छा न मालूम हुआ । किन्तु बहिन को नाहीं कैसे करी जासकती थी ?