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पेथडकुमार जाते थे, किन्तु उसमें का घी कम न होता था। यह देखकर उन्होंने विचारा, कि अवश्य ही इस बर्तन में कोई करामात है। अतः उन्होंने बर्तन को ऊपर उठाया । ऊपर उठाते ही उन्हें उसके पेंदे में एक बेल की गोल चुमली दिखाई दी। पेथड़कुमार समझ गये, कि निश्चय ही यह चित्राबेली है। उसके अतिरिक्त और किसी चीज़ से बर्तन में घी नहीं बढ़ सकता। यों साचकर, उन्होंने गवलिन से उस चुमली सहित घी का बर्तन खरीद लिया । अपने दाम पाकर गवलिन चली गई और पेथड़कुमार तथा झाँझण बड़े प्रसन्न हुए।
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गरीब पेथड़कुमार का भाग्य थोड़े ही दिनों में पलट गया और अब उन्हें खूब धन मिलने लगा । अब ये दोनों बाप-बेटे लोगों को बड़े चतुर मालूम होने लगे और सब लोग उनकी बड़ी प्रशंसा करने लगे । वहाँ के राजा जयसिंह ने भी यह प्रशंसा सुनी । अतः उन्होंने इन दोनों बाप-बेटों को बुलवाया और इनकी चतुराई की परीक्षा की। परीक्षा लेने पर राजा को भी यह विश्वास होगया, कि ये दोनों बड़े चतुर हैं। उन्होंने पेथड़कुमार को अपना प्रधान और झाँझण को नगर का कोतवाल बनाया।
पुराने प्रधान को पेथड़कुमार से ईर्ष्या हुई, कि यह आज