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की पुत्री सुरसुन्दरी ही थी। उसका पति, अपने शहर को जाते हुए मार्ग में ही लूट लिया गया। डाकुओं ने सुरसुन्दरी को पकड़कर बेंच लिया और अन्त में उसे यह रोज़गार करने की नौबत आ पहुँची।
राजा को, आपकर्मीपन तथा बापकर्मीपन की परीक्षा होगई।
अब, श्रीपाल अपना राज्य लेने के लिये सेना लेकर शुभ मुहूर्त में चल पड़े। जब चम्पा नगरी थोडी ही दूर रह गई, तो उन्होंने यह सन्देश कहला भेजाः
"राजा अजीवसेन को मालूम हो, कि आपका पुत्र श्रीपाल-जिसे आपने होशियार होने के लिये परदेश भेज दिया था-अब आगया है । आप, अब बढे हो चुके हैं, अतः राज्य उसे सौंपकर धर्मध्यान कीजिये।"
अजीतसेन ने यह बात नहीं मानी, जिसके फलस्वरूप बडा भयङ्कर-युद्ध हुआ। इस लड़ाई में अजीतसेन हार गये और श्रीपाल राजगद्दी पर बैठे। काका ने उन पर जो-जो अत्याचार किये थे, उन्हें भूलकर, श्रीपाल ने उनको एक सम्मानपूर्ण-पद दिया ।