SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के पौत्र मगधसम्राट संप्रति महाराजा हुए थे। उन्होंने आ. सुहस्तिसूरि महाराज के सदुपदेश से जैन धर्म स्वीकार किया था। वह लगभग वि.सं. 226 के आसपास उज्जैन नगरी में राज्य करते थे। उन्होंने सवालाख जिनालय और सवा करोड जिनप्रतिमायें भरवायी थीं। संप्रतिराजा द्वारा बनवाये गये इस जिनालय में मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान बिराजमान है। यह प्रतिमा वि.सं. 1519 में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख मिलता है। मूलनायक के गर्भगृह के बाहर के झरोखे में देवी की प्रतिमा है और प्रतिमा के सामने के झरोखे में नेमिनाथ भगवान के शासन अधिष्ठायक देव गोमेध यक्ष की प्रतिमा बिराजमान है। इसके सिवाय रंगमंडप में 54 इंच के खड़े काउस्सग्ग वाली प्रतिमा सहित अन्य 24 नयनम्य प्रतिमायें विराजमान हैं। इस रंगमंडप के बाहर भी बड़ा रंगमंडप बनवाया गया है। (10) ज्ञानवाव का जिनालय : श्री संभवनाथ भगवान ( 16 इंच) संप्रतिराजा के जिनालय के पास उत्तरदिशा की तरफ नीचे उतरते हुए पास में ही दायें हाथ की तरफ के द्वार में प्रवेश करते ही प्रथम मैदान में ज्ञानवाव है। इस चौक में उत्तरदिशा की तरफ के द्वार से अन्दर प्रवेश करते ही चतुर्मुखजी का जिनालय आता है जो श्री संभवनाथ भगवान के नाम से पहचाना जाता है एवं जिसमें मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान है। ज्ञानवाव जिनालय के दर्शन करके दक्षिणदिशा की तरफ ऊपर चढकर पुनः संप्रतिराजा के जिनालय के पास से लगभग 50 सीढियाँ चढने पर कोट का दरवाजा आता है। उसमें से बाहर निकलते ही लगभग 50 सीढियाँ चढने पर बायीं तरफ 'शेठ धरमचन्द हेमचन्द' का जिनालय आता है। (11) शेठ धरमचन्द हेमचन्द का जिनालय : श्री शांतिनाथ भगवान उपरकोट के दरवाजे से बाहर निकलने के बाद सर्वप्रथम 'शेठ धरमचन्द हेमचन्द' का जिनालय आता है। जिसे 'खाड़ा का जिनालय' भी त्रितीर्थी
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy