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मुझे जो शंका-कुशंका हुई उस के लिए मै क्षमा माँगता हूँ। आज मैं धन्य बन गया हूँ। इस तरफ मंत्रीश्वर के समाचार की राह देख रहा भीमा साथरिया बेचैन है, कि अभी तक सज्जनमंत्री की और से कोई समाचार क्यों नही आया? क्या मेरे मुँह तक आया हुआ पुण्य का यह अमृत कलश यूँ ही चला जायेगा? भीमा अधीर बना हुआ जूनागढ की तरफ प्रयाण करता है। वहा पहुँच कर मंत्री से रकम के समाचार नहीं भेजने का कारण पूछता है, तब सज्जनमंत्री ने हकीकत बताई तो भीमा को बहुत आघात लगा, हाथ में आई हुई पुण्य की घडी ऐसे ही निकल जाने से अवाचक बन गया। उसने कहा कि, 'मंत्रीश्वर जिर्णोद्धार के लिए दान में रखी हुई रकम अब मेरे कुछ काम की नहीं, इसलिए आप इस द्रव्य को स्वीकार करके उसका योग्य उपयोग करें।'
वंथली गाँव से भीमा साथरिया के धन की बैलगाडियाँ सज्जनमंत्री के आंगन में आकर खडी हुईं। विचक्षण बुद्धि सज्जन ने इस रकम से 'मेरकवक्षी' नामक जिनालय का और भीमा साथरिया की अविस्मरणीय स्मृति के लिए शिखर के जिनालय के समीप 'भीमकुंड' नामक एक विशाल कुंड का निर्माण करवाया।
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त्रितीर्थी