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करने वाला पुरुष यहाँ सात दिवस पुरिमुड्ढ का तप करने से उस पाप से मुक्त हो जाता है । मोती और मूंगे की चोरी करने वाला यहाँ त्रिकाल जिनपूजा करे और पंद्रह दिन तक आयंबिल करके निःस्नेह (चिकनाई रहित) भोजन करे तो वह पापमुक्त हो जाता है । धान्य का चोर और जल का चोर पात्रदान से शुद्ध होता है । रस पदार्थ की चोरी करने वाला यहाँ याचकों को याचना प्रमाण महादान देने से उस पाप से मुक्त होता है । वस्त्राभरण को हरने वाला इस तीर्थ में शुद्ध भावना से जिनपूजन करके अपने आत्मा का खड्डे जैसे संसार में से उद्धार करता है । गुरुद्रव्य और देवद्रव्य की चोरी करने वाला इस महातीर्थ की निश्रा में सद्ध्यान तथा पात्रदान में परायण होकर श्री जिनेश्वर देव की पूजन करे तो वह अपने पाप को निष्फल करता है । कुमारिका, दीक्षिता, पतिता (वेश्या), सधवा, विधवा, गुरुपत्नी और अगम्या स्त्री का संग करने वाला, इस तीर्थ पर जो छ मास पर्यंत अहर्निश जिनभगवंत के ध्यान में मन को स्थिर करके छः मास का तप करे, तो वह पुरुष अथवा स्त्री तत्काल उस पाप से मुक्त हो जाता है। गाय, महिषी (भैंस), हाथी, पृथ्वी और मंदिर चोरी करने वाला, इस तीर्थ में भक्ति से श्री जिनेश्वर भगवंत का ध्यान धरे और उन - उन वस्तुओं का यदि वह इस तीर्थ में दान करे तो वह पापमुक्त बन जाता है। अन्य के चैत्य, गृह, आराम, पुस्तक और प्रतिमा आदि में अपना नाम डाल कर, 'यह मेरा है' ऐसा जो दुष्ट पुरुष कहे, वह पुरुष इस पुण्यसत्र तीर्थक्षेत्र
शुभ आशयवाला होकर छः मास की सामायिक से पवित्र तप द्वारा उस पापों के समूह से शुद्ध हो जाता है; परमेष्ठी भगवंत का इस स्थान पर ध्यान, देवार्चन और दयादिक गुणों से युक्त, ऐसा समदृष्टि श्रावक इस तीर्थभूमि में सर्व पापों से मुक्त हो जाता है । वैसा कोई पाप नहीं कि जो यहाँ अर्हत का ध्यान करने से नहीं जाए ।
शत्रुञ्जय तीर्थ
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