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जैसा कोई मंत्री नहीं होगा जो ऐसा कार्य करते भरत को रोके नहीं।' इस पर पहले वाले ने उत्तर दिया, 'उसके पास सैंकड़ों मंत्री हैं किंतु इस कार्य में भरत को सभी उल्टी सलाह देते हैं। यह सुनकर एक व्यक्ति बोला, 'भाई! यह तो सोए हुए सिंह को दंड के आघात से जगाने जैसा काम कर रहा है। सच ही बुद्धि प्रायः भाग्य का अनुसरण करती है।' इस तरह नगर जनों के मुखों से निकलती वार्तालाप को सुनता सुवेग वेगवान रथ से तक्षशिला नगरी के बाहर तेजी से निकल गया। मुझे तो ऐसा जान पड़ता है कि जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा हो जाती है। इस कारण अपने स्वामी के बल के महात्म्य से ही ये सब उत्साह धारण करते हैं। लोकापवाद से भीरु वह दूत हृदय से उन दोनों भाइयों के परस्पर वैरी होने के हेतु की निंदा करने लगा, और यों सोचने लगा, 'अहा! चक्रवर्ती को क्या कमी है कि जो इस बाहबलि से सेवा की इच्छा करते हैं। मैंने भी केसरीसिंह के समान बाहुबलि को व्यर्थ ही इस प्रकार चिढाया।' इस तरह विचार करता सुवेग वेगवान रथ से कुछ दिनों में सुखपूर्वक अपने स्वामी के देश के निकट आ पहुंचा। उस समय उसने वहाँ के लोगों में होती ये चर्चा सुनी -- 'हे लोगों! सब अपनेअपने स्त्री, पुत्र आदि को लेकर तैयार होकर शीघ्र किले में जाओ, क्योंकि विघ्न आने से पहले सावधान हो जाना अच्छा है। धान अपक्व हो तो भी उसे काट लो और उसे पृथ्वी में गाड कर रखो। कारण कि वैसा करने से अभी सर्वथा नष्ट तो नहीं होगा। अभी तो आत्म रक्षा करना ही कठिन है। क्योंकि बाहुबलि के क्रोधित होने पर किले का बल भी किस काम का है?' -- ऐसी लोकवार्ता सुनकर सुवेग चिन्ता में पड़ गया, क्या यह बात मेरे से भी त्वरित गति से पहले ही यहाँ आ पहुंची कि जिस कारण ये लोग बाहुबलि की सेना से इतने अधिक भयभीत हैं?
दूत ने बाहुबलि के युद्ध करने के निर्णय को विस्तार से बताकर अन्त में कहा, "आपके साथ वैर की बात सुनकर युद्ध करने के लिए उनके
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त्रितीर्थी