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कारण कि बंधु बिना राज्य सुख, दु:ख जैसा है और फिर कुलीन पुरुषों को अपने ज्येष्ठ बंधु पिता समान पूज्य होते हैं। अतः उनको नमन करने से आपके मान की सिद्धि उलटे विशेष रूप से होगी। उनकी सेवा करते हुए आपको तनिक भी लज्जा प्राप्त हो ऐसा नहीं है, कारण कि उन भरत चक्रवर्ती के चरणों में देवता भी नमस्कार करते हैं।' ऐसी ही एक घटना उनके बाल्यावस्था की है।
'पूर्व में बाल्यावस्था में अश्वक्रीडा के लिए हम गंगा तट पर गए थे। उस समय मैंने उन्हें आकाश में उछाला था और दया आने से मैंने ही वापस झेल लिया था। वे बंधु अब राज्यमद में वह बात भूल गए होंगे? इसी कारण उन्होंने दुराशा से तुम्हारे जैसा दूत मेरे पास भेजा है। जब मैं युद्ध करने आऊँगा तब मूल्य से खरीदे हुए समस्त सैनिकों का नाश हो जाएगा और केवल भरत को ही मेरे भुजदंड के बल की व्यथा सहन करनी पडेगी। इसलिए, हे दूत! तुम यहाँ से शीघ्र ही चले जाओ। क्योंकि नीति मात्र के पालन की इच्छा करने वाले राजाओं के लिए दूत चाहे जैसा भी हो अवध्य है।' ।
सुवेग दूत वहाँ से डरा हुआ छुपता-छुपता अपने रथ पर बैठकर जाने लगता है तभी उनके कानों को कुछ सुनाई पड़ता है। किसी ने कहा'सभा में से यह नया आदमी भरत राजा का दूत होगा।' तब दूसरे ने पूछा, 'क्या बहुबली के अतिरिक्त पृथ्वी पर कोई अन्य राजा भी है?' तब किसी अन्य ने उत्तर दिया, 'वहाँ, बाहुबलि के ज्येष्ठ बंधु और ऋषभदेव स्वामी के पुत्र भरत नामक राजा हैं।' फिर कोई बोला, 'तब वे इतने समय तक कौन से देश में गए थे?' तो किसी ने कहा, 'वे चक्रवर्ती होने से छः खंड भरत की विजय करने हेतु गए थे।' फिर एक तीसरे ने पूछा, 'उन्होंने बाहुबलि के पास यह दूत किसलिए भेजा होगा?' उत्तर में वहाँ खड़े किसी अन्य व्यक्ति ने कहा, 'अपनी सेवा में आने को कहने के लिए भरत ने यह दूत भेजा होगा!' इस पर कोई अन्य बोला, 'क्या उसके पास मूषक
शत्रुञ्जय तीर्थ