________________
है इस कारण मेरे मन में उसके प्रति कुछ भी अप्रिय करते हुए शंका होती है, और एक तरफ वह मेरी आज्ञा नहीं मानता इस कारण कोप होता है । एक तरफ तो अपने बंधु के साथ युद्ध करने से मन में लज्जा होती है किंतु दूसरी ओर सब शत्रुओं को जीते बिना यह चक्र शस्त्रागार में प्रवेश नहीं करता, यह विचार मुझे चिंतित करता है; और फिर जिसकी आज्ञा घर में नहीं चले उसकी बाहर कैसे चलेगी? यह अपवाद का हेतु है। साथ ही अनुज बंधु के साथ युद्ध करना, यह भी तो अपवाद का कारण है। इस तरह दोनों ओर अपवाद या लोकनिंदा है।' भरतचक्रवर्ती के ये वचन सुनकर उनके भावों को जानने वाले मंत्री ने अवसर देखकर कहा, 'हे राजन्! आपके लघु बंधु बाहुबलि स्वयं ही आकर अपवाद का संकट दूर करेंगे, क्योंकि बड़े जो-जो आज्ञा करते हैं छोटों को वैसा-वैसा ही करना चाहिए, सामान्य गृहस्थों में ऐसा आचार प्रवर्तित है।' मंत्री के ये वचन सुनकर भरत राजा ने राजनीति के जानकार और वार्ताकुशल, ऐसे सुवेग नाम के दूत को समझा कर बाहुबलि के पास भेजा ।
अपने स्वामी की शिक्षा ग्रहण करके, मानो राजा का मूर्तिमान उत्साह हो ऐसा सुवेग दूत वेगवान रथ पर आरूढ होकर वेग से बाहुबलि के देश की ओर चला । श्रेष्ठ सेना साथ लेकर मार्ग में चलते हुए सुवेग ने मार्ग में होते शत्रु समान अपशकुनों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया । क्योंकि वैसे पुरुष प्रभु के कार्य में कदापि विलंब नहीं करते । जड पुरुष के चित्त के समान उसका रथ सम मार्ग में भी स्खलित होने लगा, और उसका वाम लोचन वामनता दिखाता हुआ फडकने लगा । ऐसा होते हुए भी, अशुभ शकुनों द्वारा पद-पद पर वारण करने पर भी उस सुवेग ने अनुक्रम से क्षुद्र प्राणियों से व्याप्त अरण्य में प्रवेश किया।
वहाँ उसने गाँव-गाँव में स्थान-स्थान पर सुन्दर गोपियों द्वारा गाए जाते श्री युगादि प्रभु के गुणगाण सुने । नगरों और ग्रामों की सीमाओं पर
त्रितीर्थी
28