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________________ संघ सहित शत्रुजय यात्रा सगर राजा द्वारा संघसहित यात्रा व उसका वर्णन इस प्रकार है तीर्थमार्ग में प्रत्येक पुर में और प्रत्येक गाँव में, श्री जिनेश्वर की पूजा करते, मुनिजनों को वंदन करते और दान देते सगर राजा अनुक्रम से श्री सिद्धाचल के पास आ पहुंचे। वहाँ आनंदपुर नगर में चक्री ने बहुत राजाओं के साथ तीर्थ की, प्रभु की तथा संघ की पूजा और साधर्मिक वात्सल्य बडे आदर से किए । फिर देवालय को आगे करके संघ के साथ महोत्सवपूर्वक राजा ने उस तीर्थ की तीन प्रदक्षिणा की । इसके बाद चौदह नदियों में से तीर्थजल को एकत्र कर, हर स्थान पर मार्ग बनाते हुए, संघ गिरि के ऊपर चढा । पहले सगर राजा पूर्व दिशा से गिरि पर चढे और फिर कौतुक वाले सब पुरुष अनेक मार्गों से गिरि पर चढने लगे। चक्रवर्ती गिरि पर आए तब इन्द्र भी प्रीति से वहाँ आया। दोनों रायण के वृक्ष तले परस्पर मिले । अब जह्व का पुत्र भगीरथ सगर चक्रवर्ती की आज्ञा से सेना के साथ अष्टापद गिरि पर पहुंचा । वहाँ अपने पिता और काकाओं की दहन हुई भस्म देख कर भगीरथ अत्यंत दुःखाकुल हो कर सेना सहित मूच्छित हो गया। फिर से मिला है चैतन्य जिसको, ऐसे उस सत्त्वशाली ने शोक छोड दिया और भक्ति से पूजापूर्वक नागदेव (ज्वलनप्रभ) की आराधना की। उसकी अतिशय भक्ति से संतुष्ठ हुए ज्वलनप्रभ कंचन के कुंडल चमकाता, नागकुमारों के साथ वहाँ आया । भगीरथ ने गंधमाल्य और स्तुति से उसका शत्रुञ्जय तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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