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________________ करने वाले सात यक्षों को श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु के मन्दिर में प्रतिबोधित किया था। राजा दुर्जनशल्य भी आचार्यदेव के परिचय में आया एवं उनसे अपने कोढ़ रोग के निवारण का उपचार पूछा। आचार्यश्री ने श्री पार्श्वनाथ भगवन्त की आराधना द्वारा राजा का कोढ़ दूर करवाया एवं राजा को प्रेरित कर मन्दिर का पूर्ण जीर्णोद्धार करवाया। १४वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध जबकि मुसलमान सुलतानों के सैन्य दल गुजरात की पावन भूमि पर छा गये थे। सोमनाथ की ऐतिहासिक लूट के पश्चात् उन्होंने घूम-घूमकर जैन व जैनेतर मन्दिरों का पूर्णतः विध्वंस कर दिया। इन्हीं के आक्रमण से श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ का भव्य मन्दिर भी ध्वंस हो गया। किन्तु उस समय दीर्घ दृष्टिवान संघ-प्रमुखों ने प्रभु की पावन प्रतिमा को जमीन में अदृश्य कर दिया था। ध्वस्त हुए जिन मन्दिर के अवशेष संभवत वर्तमान शंखेश्वरजी से आधा मील दूर चन्दूर के रास्ते में बिखरे पड़े हैं। श्री सेन सूरीश्वरजी महाराज शंखेश्वरजी पधारे तब एक दन्तकथा उनके श्रवण करने में आई कि एक गाय सदैव एक खड्डे के समीप होकर जंगल में घास चरने जाती। परन्तु उस खड्ढे के निकट आते ही उसका सारा दूध स्वयमेव ही नीचे झर जाता। गाय के मालिक को चिन्ता हुई अतः उसने गाय का पीछा किया। खड्डे के निकट गाय का दूध झरता देख उसे अत्यन्त आश्चर्य हुआ! उसने सोचा 'इस स्थान पर अवश्य कोई न कोई चमत्कारिक तत्त्व छिपा हुआ होना चाहिये।' अतः उसने खड्डे की खुदाई की। फलस्वरूप उस खड्डे में से भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई। इस समाचार को सुनकर ग्राम निवासी अत्यन्त हर्षित हुए। एवं इन्हीं समाचारों को सुनकर श्री सेन सूरीश्वर महाराज भी शंखेश्वरजी पधारे। नूतन, भव्य, बावन, जिनालय युक्त शिखरबन्दी, देरासर का निर्माण हुआ एवं उन्हीं आचार्यश्री के वरद् हस्तों द्वारा प्रभु प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा हुई। शङ्केश्वर तीर्थ 103
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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