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जीर्णोद्धार
शंखपुर श्वेताम्बर जैनों का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। शंखेश्वर पार्श्वनाथ के बारे में जिनप्रभसूरि ने जो विवरण प्रस्तुत किया है, वैसा ही विवरण उपकेशगच्छीय कक्कसूरि द्वारा रचित नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध में भी प्राप्त होती है। पश्चात्कालीन अन्य ग्रन्थों में भी यही बात कही गयी है।
शीलाङ्काचार्यकृत चउपन्नमहापुरुषचरियं, मलधारगच्छीय हेमचन्द्रसूरि द्वारा रचित नेमिनाहचरिय, कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, मलधार गच्छीय देवप्रभसूरि कृत पांडवचरितमहाकाव्य आदि ग्रन्थों में भी उक्त कथानक प्राप्त होता है, परन्तु वहाँ शंखपुर नहीं अपितु आनन्दपुर नामक नगरी के बसाने का उल्लेख है। जिनप्रभसूरि के उक्त कथानक का आधारभूत ग्रन्थ कौनसा है? वे स्वयं इसे गीत के आधार पर उल्लिखित बतलाते हैं
"संखपुर ट्ठिमुत्ती कामियातित्थं जिणेसरो पासो। तस्सेस मए कप्पो लिहिओ गीयाणुसारेण॥"
कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प-पृ. ५२ . यह गीत कौनसा था? उसके रचनाकार का समय क्या था? यह ज्ञात नहीं। शंखेश्वर महातीर्थ को मुंजपुर से दक्षिण-पश्चिम में सात मील दूर राधनपुर के अन्तर्गत स्थित शंखेश्वर नामक ग्राम से समीकृत किया जाता है। ग्राम के मध्य में भगवान् पार्श्वनाथ का ईटों से निमित एक प्राचीन
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त्रितीर्थी