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________________ अपूर्ण अपूर्व प्रभावयुक्त बनती गयी। आदिनाथ भगवान के शासनकाल में नमि, विनमि नामक विद्याधरों द्वारा वैताढ्य पर्वत पर पूजित हुई। नागराज धरणेन्द्र द्वारा मूर्ति का प्रभाव जाना गया। आठवीं तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभस्वामी के समवसरण में सौधर्मेन्द्र मुक्ति के लिए पूछते हैं। तब तीर्थंकर भगवान तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वप्रभु के काल में मुक्ति की बात कहते हैं। किन्तु पार्श्व प्रभु की भक्ति करने की इच्छा सौधर्मेन्द्र के हृदय में प्रकट होती है। प्रबल इच्छा के परिणाम स्वरूप विमान में प्रतिमा इन्द्र व इन्द्राणियाँ लाते हैं और भक्ति से पूजा करते हैं। बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के समय में सौधर्म देवलोक के इन्द्र द्वारा प्रतिमा की पूजा होती है। जब रामचन्द्रजी दंडकारण से वनवास जाते हैं तब सौधर्मेन्द्र इन्द्र द्वारा रथ में यह प्रतिमा पधराते हैं। राम-सीता द्वारा वनवास के दरम्यान पूजा की गयी। तत्पश्चात् प्रतिमा सौधर्मेन्द्र द्वारा पूजित हुयी। गिरनार गिरि के शृंग पर कंचन बालानक नाम की ढूंक पर प्रतिमा को लाये तथा वहाँ नागकुमारदेवों द्वारा पूजा की गयी। नागराज धरणेन्द्र एक ज्ञानी महात्मा से प्रतिमा का रहस्य जानते हैं। भक्ति से ओतप्रोत हो धरणेन्द्र पद्मावती द्वारा पूजा की गयी। इस तरह प्रतिमा स्थान-स्थान पर भिन्न-भिन्न भक्तों द्वारा पूजित होती रही है। अन्त में शंखेश्वर तीर्थ में यह प्रतिमाजी स्थापित हुए। शङ्केश्वर तीर्थ
SR No.023336
Book TitleTritirthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRina Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2012
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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