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अष्टमपरिछेद
६२ए करे । तदपीछे पुत्रसहित माता तीन प्रदक्षीणा करके यतिगुरुको नमस्कार करे. । नव सोनेरूपेकी मुजा करके गुरुके नवांगकी पूजा करे. । निलंबना
और बारात्रिका (आरती) करके दमाश्रमणपूर्वक हाथ जोडके, “वासकेवंकरेह" ऐसा पुत्रकी माता कहे. तब यतिगुरु वासदेपको, उँ कार ही कार श्रीकार सन्निवेशकरके कामधेनुमुखाकरके, वर्षमा न विद्याकरके जपके, मातापुत्र दोनोंके शिरपर क्षेप करे. तहां जी तिनके शिरमें ही श्री अक्ष रोंका सन्निवेश करे. । तदपीछे बालककों श्रदतस हित चंदनकरके तिलक करके, कुलवृद्धाके अनुवाद करके, नाम स्थापन करे. । तदपी तिसही युक्ति करके सर्व अपने घरको श्रावे.। यतिगुरुयोंको शुद्ध श्राहार वस्त्र पात्रका दान देवे. । गृहस्थगुरुको वस्त्र अलंकार स्वर्णदान देवे. ॥ नांदी, मंगलगीत, ज्योतिषिकसहित गुरु, प्रचूत फल, और मुजा, विविधप्रकारके वस्त्र, वास, चंदन, दूर्वा, नासिकेर, धन, इतनी वस्तु नामसंस्कार कार्यमें चाहिये.॥
इति अष्टम नामकरणसंस्कार विधिः
॥अथ नवमं अन्नप्राशनविधि॥ रेवती, श्रवण, हस्त, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, अनुराधा, अश्विनी, चित्रा, रोहिणी, उत्तरात्रय, धनिष्टा, पुष्य, श्न निर्दोष नक्षत्रोंमें और रवि, चंज, बुध, शुक्र, गुरु