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जैनधर्मसिंधु.
स्वर्णदान करके सन्मान करणा और ज्योतिषिक जी तिनोंके श्रागे जन्मनक्षत्रानुसारे, नामाक्षरको प्रकाश करके, खघरको जावे. तदपीछे गुरु, सर्व कुलपुरुषोंको और कुलवृद्धा स्त्रीयोंको आगे स्थापन करके ( बिठला ) तिनोंकी सम्मतिसें हाथमें दूर्वा लेके परमेष्टिमंत्रपठनपूर्वक ( कुलवृद्धाके) कानमें जातिगुणोचित नाम सुणावे. । तिसपीछे कुलवृद्धा नारीयां गुरुकेसाथ पुत्र गोदी में लीया तिसकी माता शिबिकादि नरवाहन में बैठी हुई, वा पादचारिणी
विधवायोंके गीत गाते हुए, जिनमंदिरमें जावे. । तहां मातापुत्र दोनों जिनको नमस्कार करे, माता चौवीस २ सुवर्णमुद्रा, रूप्यमुद्रा, फलनालिकेरा दि करके जिनप्रतिमाके श्रागे ढौकनिका करे. । तदपीछे देवके आगे कुलवृद्धा स्त्रीयां बालकका नाम प्रकाश करें. चैत्य न होवे तो, घरदेरासर की प्रतिमाके श्रागे यह विधि करना. तदपीछे तिसही रीतिसें पौषध शाला में श्रावे, तहां प्रवेश करके जोजनमंडली स्थान में मंगलपट्ट स्थापन करके तिसकी पूजा करे. मंगली पूजाका विधि यह है. पुत्रकी माता “ श्रीगौ तमाय नमः " ऐसा उच्चार करती हुई, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य करके मंडली पट्टकी पूजा करे. मंगली पोपरि स्वर्णमुद्रा १०, रूप्यमुद्रा १०, क्रमुक १०८, नालिकेर १५, वस्त्रहस्त २ए, स्थापन
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