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अष्टमपरिछेदः शुज दिनमें बालकको चंडमाके बल हुए, ज्योतिषि कसहित गुरु तिसके घरमें शुजस्थानमें शुजासनके ऊपर बैग हुआ, पंचपरमेष्ठिमंत्रको स्मरण करता हुश्रा रहे । तिस अवसरमें बालकके पिता, पिता महादि, पुष्प फलकरके हाथ परिपूर्ण करके ज्योति षिकसहित गुरुको साष्टांग नमस्कार करके ऐसें कहे. हे जगवन् ! पुत्रका नामकरण करो. । तब गुरु तिन पिता, पितामहादिको, तिसके कुलके पुरुषोंको, और कुलवृद्धा स्त्रीयोंको, आगे बैगके, ज्योतिषिको जन्म लग्न कहनेकेवास्ते आदेश करे. । तब ज्योतिषिक शुजपट्टेऊपर खट्टिका (खमी) करके तिस बालक के जन्मलग्नको लिखे, स्थान २ में ग्रहोंको स्थापन करे. तब बालकके पिता पितामहादि जन्मलग्नकी पूजा करे. । तिसमें वर्णमुना १२, रूप्यमुना १२, ताम्रमुखा १५, क्रमुक (सुपारी) १२, अन्य फल जाति १२, नालिकेर १२, नागवहीदल (पान) १२. श्नोंकरके छादश लग्नका पूजन करे । इनही नव नव वस्तुयोंकरी नव ग्रहोंका पूजन करे, ऐसे लग्न के पूजे हुए, तिनोंके आगे ज्योतिषिक लग्न विचार कहे. वेनी उपयोगसहित सुणे. । तदपीने व्याव र्णनसहित लग्नको ज्योतिषिक कुंकुमारोंकरके पत्रे में लिखके, कुलज्येष्टको सौंप देवे. । बालकके पिता दिकोंने ज्योतिषिका अपनी संपदानुसार वस्त्र