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जैनधर्मसिंधुः वारों में पुरुषोंको नवीन अन्नप्राशन (खाना)श्रेष्ट हैं.
और बालकोंको अन्नजोजनरिक्तादि कुतिथीयां और कुयोगोंको वर्जके श्रेष्ट है. । पुत्रको बठे मासमें,
और कन्याको पांचमे मासमें अन्नप्राशन, सत्पुरुषों ने कहा है. । जे नदत्र कहे तिनमें और पूर्वोक्त वारमें सगृहोंके विद्यमान हुए श्रमावासी और रिक्ता, तिथीको वर्जके शुज तिथीमें करणा. क्यों कि, लग्नमें रवि होवे तो, कुष्टी होवे; मंगल होवे तो, पित्तरोगी होवे; शनि होवे तो, वातव्याधि होवे; क्षीणचंड होवे तो, जीख मांगनेमें रत होवे; बुध होवे तो, ज्ञानी होवे; शुक्र होवे तो, जोगी होवे; बृहस्पति होवे तो, चिरायु होवे; और पूर्ण चंजमा होवे तो, पूजा करनेवाला और दान देनेवा ला होवे. कंटक ४।७।१०। अंत्य १२ । निधन
। त्रिकोण ५।ए। इन घरोंमें पूर्वोक्त ग्रह होवे तो, शरीरमें शुजफल देते हैं. । बठे और आग्मे घरमें चंजमा अशुज होता है, । केंज १।४।। १०। त्रिकोण ५। ए। इन घरोंमें सूर्य होवे तो, अन्ननाश होवे. ॥ तिसकास्ते बठे मासमें बालकको, और पांचमे मासमें कन्याको पूर्वोक्त तिथी वार नक्षत्र योगोंमें बालकको चंबलके हुए अन्नप्राश नका आरंज करे. । तद्यथा । पूर्वोक्त वेषधारी गुरु, तिसके घरमें जाके सर्वदेशोत्पन्न अन्नोंको एकत्र