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अष्ठमपरिजेद. ६१३ पंचामृत १, स्नात्रवस्तु , स्त्रीके नवीन वस्त्र ३, नवीन वस्त्रयुगल , स्वर्णकी श्राप मुमा ५. रूपेकी श्राप मुना ६, सोनेकी , और रूपेकी ७ एवं षोमश (१६) मुजा और , फलकी जाति ; मूलसहित दर्जए, तांबूल १७, सुगंध पदार्थ ११, पुष्प १२, नैवेद्य १३, सधवा स्त्रीयां १४, गीत मंगल १५, इतनी वस्तु पुंसवनसंस्कारमें चाहिये.॥
इति द्वितीय पुंसवन संस्कार विधि अथ तृतीयं जन्मनामा संस्कार वर्णनं ॥
जन्मसमय हुए, ज्योतिषि सहितगुरु,सूतिकागृह के निकट गृहमें एकांतस्थानमें जहां रौला न सुना देवे, स्त्री, बाल, पशु, जहां न श्रावे, तहां घटियंत्र (घमी-कलाक ) सहित उपयोगसहित चित्तवाला होकर, परमेष्टिजापमें तत्पर हुआ थका रहे। यहां पहिला तिथि वार नक्षत्रादि देखना न चाहिये क्यों कि, यह जीव कर्म और कालके अधीन है. ॥ ___ बालकके जन्म हुए समीप रहा हुथा गुरु, ज्यो तिषिको जन्मदण जाननेके वास्ते आझाकरे.तिसने जी सम्यक् जन्मकाल, करगोचर करके धारण करना तदपीछे बालकके पिता, पितृव्य (चाचा-काका ) पितामहोनें, नाल विना द्यां गुरुका, और ज्योति षिका बहुत वस्त्र श्राजूषण वित्तादिसें पूजन करना. क्योंकि, नाल नेद्यांपीछे सूतक हो जाता है. । गुरु