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शष्ठमपरिवेद.
५४३ ण जलोदर श्रष्ट जय ॥ रांधणी पमुहा सबि जाय टली, तुज नामे पामे रंग रखी॥२३॥ श्रीसह श्रीपार्श्व नमो, नमिऊण जपंतां कुष्ठ दमो ॥ चिंता मणि मंत्र जिके ध्याये, तिण घर दिन दिन दोलत थाये ॥ २४ ॥ त्रिकरण शुझे जे आराधे, तस जश कीर्ति जगमा वाधे ॥ वली कामित काम सवे साधे, सम हित चिंतामणि तुऊ लाधे ॥ २५॥ मद मकर मनश्री दूर तजे, नगवंत जली परें जेहनजे ॥ तसघर कमला कबोल करे. वली राज्य रमणी बहु लील वरे ॥ २६ ॥ जय वारक तारक तुं त्राता, सजान मन गति मतिनो दाता ॥ मात तात सहोदर तुं खामी; शिवदायक नायक हितकामी ॥ २७ ॥ करुणाकर ग कुर तुं महारो, निशिवासर नाम जपुं ताहारो, ॥ सेवकशुं परम कृपा करजो, वालेसर वंडित फल दे जो ॥ ॥ जिनराज सदा जय जयकारी, तुज मूर्ति थति मोहन गारी॥ गुजार जनपद माहे राजे, त्रि नुवन ठकुरा तुऊ बाजे ॥ए ॥ श्म नाव नले जि नवर गायो, वामासुत देखी बहु सुख पायो ॥ रवि मुनि शशि संवबर रंगें, जयदेवसूरिमहा सुख संगें ॥ ३० ॥ जय शंखपुरानिध पार्श्व प्रनो, सकलार्थ समीहित देहि विनो ॥ बुध हर्षरुचि विजयाय मुदा, तप लब्धि रुचि सुख दाय सदा ॥३१॥ कलश ॥ छ स्तुतः स कलकामितसिकिदाता, यदधिराजनत