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षष्ठमपरिवेद. थापीया,श्रीवीरें तेणी वार॥ईन्डनूति गुरुनगते थयो माहा लब्धिनो नंमार ॥ मंगल बीजुं बोली, श्री गौतम प्रथम गणधार ॥२॥ नंद नरिंदनो पामली पुरवरें, सकमाल नामें मंत्री सरू ए ॥ लाबलदे तस नारीअनुपम, शीयलवती बहुसुखकरू ए ॥ त्रु टक ॥ सुखकरू संतान नव दोय, पुत्र पुत्री सात ॥ शीयलवंतमां शिरोमणि, थूलील जग विख्यात ॥ मोह वशे वेश्या मंदिर, वस्या वर्षजबार ॥ नोग नली पेरें नोगव्या, ते जाणे सहु संसार ॥ शुध संजम पामी विषय वामी, पामी गुरु आदेश ॥ कोश्या आवा रह्यो निश्चल, मग्यो नहीं लवलेश ॥ शुरु शीयल पाले विषय टाले, जगमा जे नर नार॥ मंगल त्रीजुं बोलीए, श्रीथूलिन अणगार ॥३॥ हेममणि रूप मय घमित अनुपम, जडित कोशीसां तेजेंगेए ॥ सुरपति निर्मित त्रण गढ शोजित, मध्य सिंहासन जगमगे ए॥ त्रटक ॥ जगमगे जिन सिं हासने ए, वाजिन कोमाकोम ॥ चार निकायना दे वता, ते सेवे बेहुकरजोड ॥ प्रातिहारज आठशुं रे, चोत्रीश अतिशयवंत ॥ समवसरणें विश्वनायक, शो ने श्री नगवंत ॥ सुरनर किन्नर मानवी, बेठीते पर्ष दा बार ॥ उपदेश दे अरिहंतजी, धर्मना चारप्रका र॥दान शीयल तप नावना रे, टाले सघलां कर्म ॥ मंगल चोथु बोलीयें, जगमांहे श्रीजिनधर्म ॥ ए