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शष्टमपरिजेद. णां ॥ बावत्तरीजूत नूरि जेह. पूंजे नर जय पामे ते ह ॥ ७॥ पंचाशी पंथे जय हरे, अव्योतरशो शिव सुख करे ॥ वीसोत्तरशो नयणे निरखंत, प्रवस वेद न ते नवि हुँत ॥ ७॥ बावनशोनो उली नीर, मुख धोवे हुवे वाहालो वीर ॥ सतरिसयनो महिमा अ नंत, तुब बुद्धि किम जाणे जंत ॥ ए ॥ एकसो बहु त्तरो यंत्र प्रनाव, बालकने टाले पुष्ट नाव ॥ बिहुँसो नो यंत्र लखियें बार, वाणिज्य घणां होय हाट मका र ॥ १० ॥ त्रणशे नरनारीनो नेह, विणगे वाधे नही संदेह ॥ चारशे घर जय नवि होय, कण उत्प त्ति घणी खेत्रे जोय ॥ ११ ॥ पांचसे महिला गर्नज धरे, पुरुषहने पुत्र संतति करे ॥ बसे यंत्र होये सुख कार, सातसे ऊगडे होये जय कार ॥ १२ ॥ नवसें पंथे न लागे चोर, दशसें फुःखन पराजवे घोर ॥ ग्यारसें ले जे जीव उष्ट, तेहना जय टाले उत्कृष्ट ॥ १३ ॥ बंदि मोक्ष बारसे होय, दश सहसे पुनः ते हिजहोय ॥ वली सयलनीरदा करे, एमयंत्र तणी महिमा विस्तरे ॥ १४ ॥ पंचाससे राजादिक मान, शाकणि दोष निवारण ग्यान ॥ कंठे तथा मस्तक जे धरे, अशुल कर्मते शुद्धज करे ॥ १५ ॥ बावनना नो मस्तके तथा, कंठे खेत्रपालनो हित सदा ॥ पण यालीस शिर कंठे होय, सर्व-वश्य थाय तस जोय ॥ ॥ १६ ॥ कुंकुम गोरोचंदन सार, मृगमदसों चौदश