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शष्टमपरिछेद.
५२३ लगी, लखमी सहु श्राय मले वेगी ॥४॥ गुल पा पमियां गुरुवार दिने, लापसिया लाऊ शुद्ध मने ॥ धुप दिप नैवेद्य धरो, श्रापम दिन पूजा अवश्य क रो॥५॥ जेहने दिनप्रति जाप सदा, तस सुपनांतरमे प्रत्यद कदा ॥ ज पियां सहु जाये आपदा, कोश मणा घरे रहे न कदा ॥६॥ मुहमद सारु तमें जस कर्यो, गुण सार जिस्यो तमें गुण कस्यो ॥ श्री दी ना नाथजी दया करो, शिर उपर हाथ दियो सख रो॥७॥ नवियण जे नावें नजशें, कारज सिकि आपणी करशे ॥ पूज्यां पुत्र वधे उगणा, किणी वा तें कदि रहें नहि उणा ॥ ॥ श्री मणिन मनमें ध्यावो, सुख संपत्ति नहु वेगें पावो ॥ लक्ष्मी कीर्तिवर श्राप लहे, शिवकीर्ति मुनि एम सुजस कहे ॥ए॥
॥ अथश्रीमणिनजीनी श्रारति प्रारंजः ॥ ॥जय जय निधि, जय माणिक देवा ॥जयमा०॥ हरि हर ब्रह्म पुरंदर, करता तुज सेवा ॥ जयदेव जयदेव ॥ १॥ तुं वीराधिप वीरा, तुं वंबित दाता ॥ तुंवं ॥ माता पिता तुं सहोदर, डो प्रजु जगत्राता ॥ जय दे० ॥२॥ हरि करीबंधन उदधी, फणिधर अरि अनला ॥ फणि० ॥ ए तुज नामे नासे, साते जय सघला ॥ जयदे ॥ ३ ॥माक त्रिसुल फूल माला, पासांकुस बाजें ॥ पासांग ॥ एक कर दाणव मस्तक, एम षट् जुज राजे॥ जयदे ॥४॥ तुं